Thursday, May 21, 2015

सत्संग की ज्ञान गंगा




सत्संग की ज्ञान गंगा से मन को पवित्र करके इस उचल कूद मचाते हुए मन को परमात्मा रुपी नाम की लोरी सुनते जाओ, तब यह मन परमात्मा में निमग्न होगा। 

Jo milne par





Jo milne par sadaiv khushi de, woh sajjan. Jo milne par dukh de, woh durjan. Tera jaana aisa ho ki sabki aankhon mein aansoon ho.
गुरुवर सुधांशुजी महाराज के प्रवचनांश

मन के पौधे को




मन के पौधे को संसार से उखाड़कर परमात्मा के दरबार में लगा दो, भक्ति से सीचना इस पौधे को। ज्ञान का जल, तपस्या की खाद डालना, यह मन भगवन का दर्शन कराएगा। 

गुरु भक्तो ! विचार कीजिए




गुरु भक्तो ! विचार कीजिए कि आप आध्यात्मिक दृष्टि से कहाँ हैं ?

अधि का अर्थ है ऊपर और आत्म का अर्थ है स्वयं दोनों का संधिपरक अर्थ है स्वयं से ( निजी स्वार्थों से )ऊपर और जो निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर कार्य करता है वह आध्यात्मिक कहलाता हे !
इस दृष्टि से अब विचारणीय यह है की आप कितने आध्यात्मिक हैं ?
* क्या कभी आपने सोचा है की स्वयं के लिए जीने अथवा अपना पेट भरने के लिए ही आपका जन्म नहीं हुआ ?
* क्या कभी आप अपने दुर्गुणों ( स्वार्थ ,इर्षा ,द्वेष ,लोभ ,-मोह , दंभ आदि )को दूर करने तथा सदगुण ( सेवा ,परोपकार ,सहानभूति स्वाध्याय ,सत्संग ,संतोष ,समर्पर्ण आदि ) के ग्रहण द्वारा लोकहित के लिए एकांत चिंतन करते हैं ?
*क्या कभी आपने स्वयं न खाकर किसी भूके को खिलाया है अथवा किसी खिलाने वाले का सहयोग दिया है ?
* क्या आपने कभी दीन दुखिया और बिछुडों को गले लगाया हे ?
*सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर क्या कभी आपने गिरतों की बांह पकड़ी ! 

बिना हरी नाम



बिना हरी नाम के दुखियारी सारी दुनिया"