चिन्ता P
- चिंता
चिंता तू ने क्यों मौत दिखाई ,
जिंदे को तू ने आग लगाई !
चिंता रूपी घुन लग जाने पर ,
हो गया मनुष्य खोकला अन्दर से !
चिता जलावे मुरदे को ,
और चिंता जीवित चिंता मारे घुला घुला कर ,
साँस लेने की भी न दे मोहलत !
चिंतादे मति फिराए
चिंता से सुबुद्धी भी कुबुद्धी बन जाए !चिंता कर देती हे भ्रमित
आदमी को नहीं रहता अच्छे बुरे का होश !
चिंता में आदमी कहना कुच्छ चाहता हे ,पर कहता कुच्छ और है ,
चिंता लगने न दे ध्यान किसी काम में ,
न भगवान के नाम में ,
आदमी पागल सा घूमता है चिंता बस
चिन्ता ही उस का काम हे !
चिंता पैसा कमाने की
चिंता बच्चे के पढाई की ,
चिन्ता बच्चे न होने के ,
chinataa बड़े घर के ,चिन्ता कार होने के ,
किया चल नहीं sakataa काम बिना चिंता के
छोड़ दे चिंता भगवान् पर ,