चिंता P
- तू चिंता काहे करता है ,
आहें काहे भरता है ,
तेरे ऊपर हाथ हे प्रभू का ,
रख श्रधा उस के ऊपर ,
और छोड़ दे चिंता उन पर ,
करता जा कर्म अपना ,
फल की चाह न कर ,
मन मंदिर को कर स्वच्छ ,
और दे आमंत्रण प्रभू को ,
देख प्रभू भागे चले आयेगे ,
कहे मदन गोपाल तेरी ,
सब चिंताएं मिटायंगे !
Labels: चिंता