सद्ग्रन्थ इसलिए नहीं होते कि इनके ऊपर एक सुन्दर-सा रेशम का कपड़ा ढ़ककर केवल इनके आगे हाथ जोड़ लिए जाएं, बल्कि इनके भीतर जो शब्द हैं अगर वे आपके मस्तिष्क में स्थापित हो गए तो वे आपको इस तरह महकाएँगे जैसे किसी किताब के अंदर रखे सुगंधित फूल कुछ दिनों बाद पन्ने पलटने पर खुशबू देते हैं।
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